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रंगों में संगीत की मिठास: होली के गीतों का सफर

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होली का त्योहार मस्ती, उल्लास और बेफिक्री का प्रतीक है। यह रंगों और खुशियों का त्योहार न केवल आपसी बैर-भाव को मिटाता है, बल्कि संगीत और नृत्य के रंगों से भी सराबोर कर देता है। भारतीय त्योहारों में शायद ही कोई ऐसा त्योहार हो जो होली की तरह गीत-संगीत से इतना गहरा नाता रखता हो। होली के ये गीत सदियों से हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रहे हैं।

होरी और धमार का मेल

होली के पारंपरिक गीतों का इतिहास लगभग 250-300 साल पुराना है। इन गीतों की जड़ें ध्रुपद परंपरा में पाई जाती हैं, जहां “धमार” नामक गीत होली के अवसर पर गाए जाते थे। धमार एक 14 मात्राओं वाला ताल है, जो इस शैली की पहचान है। समय के साथ, धमार का स्वरूप बदला और ‘खयाल’ शैली की लोकप्रियता बढ़ी। इससे होली के गीतों में एक नया और मधुर अंदाज आया।

“होरी” नामक गीत होली के अवसर पर विशेष रूप से गाए जाते हैं, जबकि चैत्र महीने में गाए जाने वाले गीतों को “चैती” कहा जाता है। इन गीतों में प्रेम, मस्ती और रास-रंग की अद्भुत झलक मिलती है।

संगीत में बसी होली की खुशबू

हाल ही में प्रसिद्ध संगीतकार शुभेंद्र राव और सास्किया डी हास द्वारा आयोजित एक बैठक में होली के गीतों का रंग बिखेरा गया। इस बैठक में राजस्थान और बनारस की लोक परंपरा से जुड़ी होरियों ने समां बांध दिया। उत्तर प्रदेश में होरी गीतों का विशाल खजाना है, वहीं पंजाब के आनंदपुर साहिब में “होला मोहल्ला” के दौरान नृत्य और युद्ध कौशल का भी प्रदर्शन होता है।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में होली के गीतों में रंग, बिछोह और प्रेम की भावनाएं उभरकर सामने आती हैं। “फागुन महीने, होली जे आई, मैं किस संग खेलूंगी होली” जैसे गीत यहां की संगीत परंपरा का अभिन्न हिस्सा हैं। इन गीतों में धीमी लय, सरल सुर और प्राकृतिक सुंदरता की मिठास होती है।

बनारस घराने का संगीत रंग

बनारस होरी गीतों का प्रमुख केंद्र है। प्रसिद्ध गायिका सुनंदा शर्मा ने “करो ना मोसे मन मानी” (राग पुरिया कल्याण) और “रंग न डालो श्यामजी” (राग सोहनी) जैसे दुर्लभ खयाल प्रस्तुत किए। इन गीतों में होली के उल्लास और विरह की गहरी अनुभूति झलकती है।

होली गीतों के विविध रंग

होरी गीतों के अलग-अलग प्रकार होते हैं – कुछ शरारती और नटखट, कुछ दर्दभरे और कुछ शिकायत भरे। शिव पर आधारित होरी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है – पंडित चन्नूलाल मिश्रा का “मसान में खेलें होली डिगंबर”।

राजस्थान के मंगनियार गायकों ने होली के गीतों में प्रेम और रंगों का जश्न मनाया, वहीं बनारस की होरियों में नारी स्वाभिमान और भावनाओं का अनोखा मिश्रण देखने को मिला। इन गीतों में कभी राधा-कृष्ण की रासलीला का वर्णन होता है, तो कभी विरह की पीड़ा से भरी व्यथा।

संगीत में रंगों का जादू

यह बैठक यह दर्शाने में सफल रही कि होली का संगीत न केवल रंगों को गहराई देता है, बल्कि भारतीय संस्कृति और भावनाओं का भी अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। होली के ये गीत सदियों से हमारे त्योहारों को संगीतमय बनाते आ रहे हैं, और जब-जब फागुन की बयार बहेगी, ये गीत हमें अपने रस में भिगोते रहेंगे।

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