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सुप्रीम कोर्ट से “मुस्लिम विरोधी” बयान पर माफी मंगवाएगा जज से? भागवत ने दी BJP को नसीहत, “मंदिर-मस्जिद विवाद बंद करो”

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव द्वारा कथित “मुस्लिम विरोधी” बयान का मामला इन दिनों चर्चा में है। उन्होंने मुस्लिम बच्चों और उनकी परवरिश को लेकर विवादित टिप्पणी की थी। जज ने यह भी कहा था कि देश का कानून बहुसंख्यकों के हिसाब से, यानी हिंदुओं के अनुसार चलेगा। इस बयान पर विवाद गहराते देख, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस शेखर यादव से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को कहा है।

जस्टिस शेखर यादव के बयान पर बवाल

जस्टिस यादव ने अपने बयान में कहा था कि मुस्लिम बच्चों को ऐसी परवरिश दी जाती है, जहां उनके सामने जानवरों को काटा जाता है। वहीं, हिंदू बच्चे वेदों का अध्ययन करते हैं। इस बयान को लेकर विपक्ष ने तीखी आलोचना की और जज के खिलाफ महाभियोग की मांग की। कॉलेजियम ने इस बयान को “टालने योग्य” बताया है और उनसे सार्वजनिक माफी की अपेक्षा की है।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

सूत्रों के अनुसार, कॉलेजियम ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है। जस्टिस यादव को माफी मांगने के लिए कहा गया है। साथ ही, इस मामले पर कोई अगला कदम उठाने से पहले न्यायपालिका के सभी संबंधित सदस्यों से विचार-विमर्श किया जाएगा। जस्टिस यादव ने अपने बयान को सही ठहराने के लिए स्पष्टीकरण देने की इच्छा जताई है।

मोहन भागवत का बयान और BJP को नसीहत

इस बीच, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवादों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उससे जुड़े संगठनों को परोक्ष रूप से नसीहत दी है। पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि “राम मंदिर निर्माण जरूरी था, लेकिन अब नए मुद्दे उठाकर समाज में नफरत फैलाना सही नहीं है।”

भागवत ने आगे कहा, “हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग खोजने की जरूरत नहीं है। ऐसे मुद्दे देश की शांति को भंग करते हैं। पूजा के हर स्थान का सम्मान होना चाहिए।”

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की टिप्पणी

वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में शाही जामा मस्जिद विवाद पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “बाबरनामा में लिखा है कि एक मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।” उन्होंने आगे कहा कि “भारत में सिर्फ श्रीराम, श्रीकृष्ण और भगवान बुद्ध की परंपरा ही बचेगी, बाबर और औरंगज़ेब की परंपरा नहीं।”

विवाद और राजनीति

भागवत के बयान को BJP और उसके समर्थकों के लिए स्पष्ट संदेश माना जा रहा है। वहीं, जस्टिस यादव के बयान को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। विपक्षी नेता कपिल सिब्बल ने महाभियोग की तैयारी शुरू कर दी है।

क्या न्यायपालिका पर है संकट?

जस्टिस यादव द्वारा बहुसंख्यकों के हिसाब से कानून चलने की बात कहना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। विशेषज्ञों का मानना है कि जज जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह के बयान से बचना चाहिए।

अब देखना यह है कि जस्टिस यादव सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हैं या उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होती है।

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