28 से 30 सितंबर 2024 तक आयोजित हुए इस तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रतिष्ठित विद्वान, नीति निर्माता, पर्यावरणविद्, और अकादमिक वर्ग के लोग दुनिया भर से एकत्र हुए। सम्मेलन का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से संबंधित गंभीर मुद्दों पर विचार-विमर्श करना और सुदृढ़ समाज के निर्माण व सतत विकास के लिए रणनीतियों पर चर्चा करना था।
उद्घाटन समारोह 28 सितंबर को सुबह 10:30 बजे प्रारंभ हुआ, जिसमें पवित्र कुरान की आयतों की तिलावत के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
इस कार्यक्रम की मुख्य संरक्षिका एएमयू की कुलपति प्रोफेसर नाइमा खातून थीं, जिन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि शिक्षा जगत, नीति निर्माताओं और समुदायों को मिलकर धरती के संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित हो सके। प्रोफेसर खातून ने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों जैसे समुद्र स्तर में वृद्धि, अत्यधिक मौसमीय घटनाओं और जैव विविधता के नुकसान पर ध्यान आकर्षित किया।
सम्मेलन के संयोजक और भूगोल विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर निज़ामुद्दीन खान ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों से आए 400 से अधिक प्रतिनिधियों और मलेशिया, बांग्लादेश, नेपाल और इथियोपिया जैसे देशों के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने अपने स्वागत भाषण में विभाग की शताब्दी वर्षगांठ पर जोर देते हुए इसे भूगोल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान का प्रतीक बताया।
मुख्य अतिथि प्रोफेसर पृथ्विश नाग, जो महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व कुलपति और ख्यातिप्राप्त भूगोलविद हैं, ने अपने विचारोत्तेजक संबोधन में स्थानीय जलवायु परिवर्तनों और उनसे उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
उन्होंने जलवायु क्षेत्रीय मानचित्र का उपयोग करके यह समझाया कि किस प्रकार विभिन्न क्षेत्र स्थानीय जलवायु परिवर्तनों के कारण विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। उनके अनुसार, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए क्षेत्रों के अनुसार विशेष रणनीतियाँ विकसित करना आवश्यक है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय ओडिशा के अकादमिक और प्रशासनिक सलाहकार प्रोफेसर वी.सी. झा ने प्रमुख वक्ता के रूप में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों और बढ़ते हुए चरम मौसम की घटनाओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने तकनीकी नवाचार और नीतिगत ढांचे की आवश्यकता पर जोर दिया जिससे कमजोर समुदायों को इन प्रभावों से बचाया जा सके।
विशेष अतिथि प्रोफेसर जगवीर सिंह, जो कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के वैज्ञानिक हैं, ने कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि वित्तीय सहयोग और प्रोत्साहन से पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को बढ़ावा दिया जा सकता है।
सम्मेलन के दौरान विभिन्न सत्रों में जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और शमन, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs), नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी, जैव विविधता संरक्षण जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई।
दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स की भूगोल विभाग की अध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय भूगोल संघ की उपाध्यक्ष प्रोफेसर अनिंदिता दत्ता ने अपने संबोधन में जलवायु मॉडलिंग, नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों और आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर बल दिया।
सम्मेलन के समापन पर विज्ञान संकाय के डीन प्रोफेसर सर्ताज तबस्सुम ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद व्यक्त किया और निरंतर सहयोग व शोध की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना किया जा सके।
सम्मेलन का समापन आभार वक्तव्य के साथ हुआ जिसे प्रोफेसर राशिद अज़ीज़ फ़रीदी ने प्रस्तुत किया। उन्होंने सभी प्रतिभागियों और वक्ताओं को उनके अमूल्य योगदान के लिए धन्यवाद दिया। अंत में तारण विश्वविद्यालय के सम्मान के साथ सम्मेलन का समापन हुआ और इसके बाद राष्ट्रीय गान प्रस्तुत किया गया।