कौन-कौन से स्थल विवाद में?
इन याचिकाओं में अजमेर दरगाह, अढ़ाई दिन का झोपड़ा, संभल की शाही जामा मस्जिद, लखनऊ की टीलेवाली मस्जिद, बदायूं की शम्सी जामा मस्जिद और जौनपुर की अटाला मस्जिद शामिल हैं। पहले से चर्चित ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की ईदगाह का मामला भी लगातार चर्चा में है।
अजमेर दरगाह और अढ़ाई दिन का झोपड़ा
अजमेर की पश्चिम सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसमें दावा किया गया कि अजमेर दरगाह मूल रूप से संकट मोचन मंदिर थी। यह दावा उस दरगाह पर किया गया जहां हर धर्म के लोग श्रद्धा से आते हैं, और प्रधानमंत्री हर साल उर्स पर चादर भेजते हैं।
दूसरी ओर, 12वीं सदी की मस्जिद अढ़ाई दिन का झोपड़ा को लेकर मांग उठी कि यह स्थान पहले संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर था। अजमेर के उपमहापौर नीरज जैन ने इस मुद्दे को जोर देकर उठाया। जबकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, यह मस्जिद 1200 ईस्वी के आसपास कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाई गई थी।
शम्सी जामा मस्जिद का मामला
800 साल पुरानी शम्सी जामा मस्जिद पर भी विवाद खड़ा हुआ। हिंदू महासभा के मुकेश पटेल ने दावा किया कि यह स्थान पहले नीलकंठ महादेव मंदिर था। यह मस्जिद 1213 ईस्वी में सुल्तान इल्तुतमिश द्वारा बनाई गई थी। बदायूं की यह संरचना उत्तर भारत की तीसरी सबसे पुरानी मस्जिद मानी जाती है।
पूजा स्थलों अधिनियम, 1991 की धारा 3 और 4 यह सुनिश्चित करती हैं कि 15 अगस्त 1947 को किसी पूजा स्थल की जो स्थिति थी, उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। हालांकि, इन याचिकाओं के चलते इस कानून की अनदेखी हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन याचिकाओं के कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है।
बढ़ते सर्वेक्षण की मांग और प्रतिक्रिया
संभल में शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद हिंसा भड़क गई, जिसमें छह लोग मारे गए। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने इस मस्जिद के सर्वेक्षण रिपोर्ट को सील कवर में रखने का आदेश दिया। उधर, विभिन्न धर्मगुरुओं और समाज के बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इन सर्वेक्षणों को रोकने की अपील की।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह स्वत: संज्ञान लेते हुए निचली अदालतों को इस तरह की याचिकाओं पर सुनवाई से रोके।
निष्कर्ष
ऐसे मुद्दे भारत की गंगा-जमुनी तहजीब के लिए खतरा बन सकते हैं। संविधान और कानून के तहत पूजा स्थलों की स्थिति को बनाए रखना सरकार और न्यायपालिका की जिम्मेदारी है। इस तरह के विवाद देश की सांप्रदायिक एकता को कमजोर कर सकते हैं।