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भारत के विनिर्माण और निर्यात क्षेत्रों में असफलता: चीन से तुलना और सुधार की आवश्यकता

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भारत के विनिर्माण और निर्यात क्षेत्र में हालिया विवादित विमर्श, देश की विकास दर और वैश्विक व्यापार में स्थान को लेकर गंभीर सवाल उठा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘लोकल के लिए वोकल’ अभियानों के बावजूद, भारत का विनिर्माण क्षेत्र उम्मीदों के अनुसार वृद्धि नहीं कर पाया है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र का योगदान GDP में अब भी 17-18% के बीच स्थिर है, जो 1990 के दशक से ज्यादा नहीं है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि, जबकि योजनाएँ और अभियान बड़े स्तर पर प्रचारित किए गए हैं, उनकी वास्तविक प्रभावशीलता पर प्रश्नचिन्ह है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों ने जितना प्रचार किया है, उतनी प्रगति नहीं दिखाई दी है। भारत की स्थिति इस मामले में चीन से बहुत पीछे है, जहां निर्यात और विनिर्माण क्षेत्र में प्रगति तेजी से बढ़ी है।

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चीन ने ऑटोमोबाइल, प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रिक वाहन जैसे क्षेत्रों में अपार सफलता हासिल की है। 2024 तक चीन का निर्यात $992 बिलियन से अधिक पहुंच चुका है, जबकि भारत को चीन से व्यापार घाटा हो रहा है। चीन की कंपनियाँ, जैसे BYD, अब टेस्ला से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं और वैश्विक तकनीकी विकास में अग्रणी हैं, जबकि भारत को अभी भी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है।

भारत में निर्यात और विनिर्माण क्षेत्र में धीमी प्रगति और चीन से निरंतर आयात की आवश्यकता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्वनिर्भर उद्योगों के निर्माण में कमी है। जो उद्योग विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें, उनका अभाव दिखाई दे रहा है। भारत के निर्यात क्षेत्र में समृद्धि के लिए नीति में समग्र पुनरावलोकन और एक विकासोन्मुख दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

भारत के विनिर्माण और निर्यात क्षेत्रों में वास्तविक सुधार की जरूरत है, जिसमें सरकार को सकारात्मक बदलाव के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। भाषणों और राजनीतिक नारों से आगे बढ़कर, एक ठोस और निवेशक-अनुकूल माहौल की आवश्यकता है, जो उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने में सक्षम बनाए।

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