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वरिष्ठ वकील इकबाल छागला का निधन: बॉम्बे हाई कोर्ट के आइकन जिन्होंने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई

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मुंबई में 12 जनवरी 2025 को 85 वर्ष की आयु में वरिष्ठ वकील और न्याय व्यवस्था के प्रमुख हस्ताक्षर इकबाल एम. छागला का निधन हो गया। उन्हें उनकी कानूनी निपुणता, न्यायपालिका में सुधार के लिए उठाए गए कदमों और बॉम्बे बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में उनकी अद्वितीय भूमिका के लिए जाना जाता है। उनके योगदान ने न केवल भारतीय न्याय व्यवस्था को आकार दिया, बल्कि भारतीय समाज को न्याय के प्रति एक नई दृष्टि प्रदान की।

छागला का जन्म 1939 में हुआ था। वे बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश एम. सी. छागला के पुत्र थे, जो भारतीय न्यायपालिका के महान नेताओं में से एक माने जाते हैं। एम. सी. छागला का कार्यकाल न्यायपालिका के लिए मील का पत्थर साबित हुआ, और उनका प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है। छागला परिवार का न्याय क्षेत्र में बहुत लंबा इतिहास रहा है, जो इकबाल छागला के कार्यों में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

इकबाल छागला ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से इतिहास और कानून में मास्टर डिग्री की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। जल्द ही उनकी कानूनी क्षमता को पहचान मिली, और वे मात्र 39 वर्ष की आयु में वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किए गए। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में अपनी कानूनी दक्षता का प्रदर्शन किया, जिनमें संवैधानिक, व्यापारिक और सार्वजनिक हित से जुड़े मामलों की विशेषता रही।

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1990 के दशक में जब भारतीय न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बहस तेज हुई, तब छागला ने इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाई। उन्होंने बॉम्बे बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में सक्रिय रूप से न्यायपालिका में सुधार की दिशा में कदम उठाए। इसके तहत, उन्होंने न्यायिक भ्रष्टाचार के खिलाफ कई प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किए और छह सक्रिय न्यायाधीशों के खिलाफ प्रस्ताव पास किए। इनमें से कुछ न्यायाधीशों को इस्तीफा देना पड़ा, जिससे यह साफ हो गया कि छागला न केवल न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को उजागर करने में सक्षम थे, बल्कि उन्होंने उस पर प्रभावी कार्रवाई भी की।

छागला का यह कदम भारतीय न्यायपालिका के सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उनकी आवाज़ ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और ईमानदारी की आवश्यकता को उजागर किया, और यह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। छागला ने हमेशा यह महसूस किया कि न्यायपालिका को जनसाधारण के विश्वास का प्रतीक होना चाहिए और इसके लिए ज़रूरी है कि यह भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से मुक्त हो।

इकबाल छागला ने अपने जीवन में कभी न्यायपालिका में नियुक्ति स्वीकार नहीं की, जबकि उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश बनने का प्रस्ताव मिला था। उन्होंने इन प्रस्तावों को ठुकरा दिया, क्योंकि उनका मानना था कि वकालत में रहकर वे समाज और कानून के क्षेत्र में अधिक प्रभाव डाल सकते हैं। यह उनका दृढ़ विश्वास था कि न्यायपालिका का हिस्सा बनने से अधिक जरूरी था समाज में न्याय का प्रसार करना।

छागला ने 1990 से 1999 तक बॉम्बे बार एसोसिएशन का नेतृत्व किया, जो भारत के सबसे पुराने वकीलों के संघों में से एक है। उनकी अध्यक्षता के दौरान, एसोसिएशन ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर कदम उठाए और भारतीय न्यायपालिका के सुधार के लिए कई पहल की। छागला की कानूनी नेतृत्व क्षमता और उनके समर्पण ने न केवल वकीलों को प्रेरित किया, बल्कि समूचे भारतीय समाज को न्याय के महत्व को समझाया।

उनका योगदान सिर्फ कानूनी क्षेत्र तक सीमित नहीं था। वे एक महान इंसान और समाजसेवी भी थे, जिन्होंने हमेशा अपने पेशेवर जीवन में ईमानदारी और नैतिकता को महत्व दिया। उनका निधन भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनके द्वारा छोड़ी गई धरोहर हमेशा जीवित रहेगी।

इकबाल छागला के निधन से भारतीय न्यायपालिका और वकालत के क्षेत्र में एक युग का समापन हुआ है, लेकिन उनका कार्य और विचार आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।

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