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एक देश, एक चुनाव: क्या है इस प्रस्ताव पर विवाद?

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हाल ही में केंद्र सरकार ने एक देश, एक चुनाव से जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसके बाद इस पर चर्चा तेज हो गई है। सरकार का कहना है कि इससे संसाधनों की बचत होगी और प्रशासनिक प्रक्रिया में सुगमता आएगी। हालांकि, विपक्षी दल और कई राज्यों के मुख्यमंत्री इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।

क्या है एक देश, एक चुनाव?

एक देश, एक चुनाव का मतलब है कि लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। यह हर 5 साल में एक बार होगा। फिलहाल, भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं।

क्यों हो रहा है विरोध?

इस प्रस्ताव को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इसका जोरदार विरोध किया है। विपक्षी दलों ने इसे भारत के संघीय ढांचे पर हमला बताया है।

  1. संघीय ढांचे पर हमला

ममता बनर्जी का कहना है कि यह फैसला देश के लोकतंत्र और संघीय ढांचे को कमजोर करेगा। उन्होंने इसे “असंवैधानिक” और “लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ” बताया।

2. संसाधनों की उपलब्धता पर सवाल

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि इतने बड़े स्तर पर एक साथ चुनाव कराना चुनाव आयोग के लिए लगभग असंभव होगा। इसमें भारी मात्रा में संसाधनों की जरूरत होगी।

3. सरकार पर दबाव कम होगा

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अलग-अलग चुनाव होने से सरकार पर जनता का दबाव बना रहता है। यदि सभी चुनाव एक साथ होंगे, तो सरकार का जवाबदेही तंत्र कमजोर होगा।

4. क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान

कई क्षेत्रीय पार्टियों का कहना है कि एक साथ चुनाव होने पर स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे और राष्ट्रीय पार्टियों का वर्चस्व बढ़ जाएगा। असदुद्दीन ओवैसी और एम.के. स्टालिन ने इसे क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व के लिए खतरनाक बताया है।

5. समय से पहले सरकार गिरने पर संकट

यदि किसी राज्य की सरकार कार्यकाल पूरा होने से पहले गिर जाती है, तो क्या उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू रहेगा? इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित हो सकती है।

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सरकार का पक्ष

सरकार का कहना है कि एक देश, एक चुनाव से संसाधनों की बचत होगी और विकास कार्य बिना किसी रुकावट के जारी रहेंगे। चुनाव के दौरान लगने वाला आचार संहिता विकास कार्यों को बाधित करता है।

संवैधानिक चुनौतियां

इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की जरूरत होगी। इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। वर्तमान में, एनडीए के पास इतनी सीटें नहीं हैं, जिससे यह प्रस्ताव पास करना मुश्किल है।

विपक्ष की मांग: पहले चुनाव सुधार

विपक्ष का कहना है कि चुनाव सुधार किए बिना यह प्रस्ताव लागू करना अनुचित है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर पहले ही सवाल उठाए जा रहे हैं। ईवीएम की पारदर्शिता, मतगणना में गड़बड़ी और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर भी विरोध जारी है।

निष्कर्ष

एक देश, एक चुनाव का मुद्दा देश के राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव ला सकता है। लेकिन इसे लागू करने से पहले इससे जुड़े संवैधानिक और व्यावहारिक पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है। विपक्षी दल इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संघीय ढांचे पर हमला मानते हैं, जबकि सरकार इसे समय और धन की बचत के लिए जरूरी कदम बता रही है।

 

 

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