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महाराष्ट्र की सियासी गुत्थी: मुख्यमंत्री पद पर संशय, 5 दिसंबर को शपथ ग्रहण समारोह

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दैनिक छठी आंख समाचार द्वारा विशेष रिपोर्ट

मुखिया प्रधान संपादक वाई.के. चौधरी की रिपोर्ट

महाराष्ट्र की राजनीति इन दिनों एक अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। 5 दिसंबर को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित होना तय है, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। यह स्थिति न केवल राजनीतिक दलों के भीतर तनाव पैदा कर रही है, बल्कि संवैधानिक प्रावधानों और प्रशासनिक स्थिरता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है।

मुख्यमंत्री पद को लेकर संघर्ष

मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का नाम चर्चा में है, लेकिन अभी तक भाजपा ने औपचारिक घोषणा नहीं की है। दूसरी ओर, वर्तमान कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी अपनी दावेदारी ठोक दी है। शिंदे का कहना है कि उन्होंने जनता के लिए काम किया है और जनता उन्हें फिर से मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है।

गृह मंत्रालय पर तनातनी

शिंदे सेना और भाजपा के बीच गृह मंत्रालय को लेकर गंभीर खींचतान जारी है। शिंदे इसे अपने पास रखना चाहते हैं, जबकि भाजपा इसे अपने अधिकार में लेना चाहती है। यह विवाद सरकार गठन के दौरान एक बड़ी बाधा बन सकता है।

संवैधानिक सवाल और विधानसभा भंग करने में देरी

महाराष्ट्र की विधानसभा को 26 नवंबर तक भंग किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। संवैधानिक प्रावधानों, विशेष रूप से अनुच्छेद 172 और 356 का पालन न करने को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। विपक्षी दल और शिवसेना के नेता इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं।

गोडी मीडिया का मौन और विपक्ष का हमला

जहां गोडी मीडिया इन संवेदनशील मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए है, वहीं शिवसेना के नेता संजय राउत और आदित्य ठाकरे ने भाजपा और न्यायपालिका पर सीधा हमला बोला है। उनका कहना है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए था।

क्या होगा मुख्यमंत्री का फैसला?

भाजपा की स्थिति मजबूत दिखती है, लेकिन भीतर ही भीतर असंतोष और संघर्ष स्पष्ट है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा और शिंदे सेना के बीच समझौता होता है या देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनते हैं।

निष्कर्ष

महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज है। मुख्यमंत्री पद को लेकर असमंजस और दलों के भीतर आपसी खींचतान यह दिखाती है कि राजनीतिक स्थिरता एक चुनौती बनी हुई है। 5 दिसंबर का शपथ ग्रहण समारोह इस असमंजस को खत्म करेगा या नई सियासी उलझनों को जन्म देगा, यह देखने वाली बात होगी।

रिपोर्ट: वाई.के. चौधरी, दैनिक छठी आंख समाचार

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