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200 साल पुरानी कुप्रथा – जब दलित महिलाओं को स्तन ढकने के लिए चुकाना पड़ता था टैक्स*

भारतीय इतिहास में सामाजिक असमानता और शोषण की कई कहानियां दर्ज हैं। इनमें से एक है केरल के त्रावणकोर साम्राज्य में लागू किया गया “स्तन ढकने का टैक्स,” जिसे मलयालम में मुलक्करम कहा जाता था। यह कुप्रथा न केवल जातिगत भेदभाव का प्रतीक थी, बल्कि महिलाओं के आत्मसम्मान और गरिमा पर गहरा आघात थी।

क्या था “स्तन ढकने का टैक्स”?

त्रावणकोर साम्राज्य में निम्न जातियों की महिलाओं को अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा ढकने का अधिकार नहीं था। यह कुप्रथा सवर्णों द्वारा समाज में अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने और निम्न जातियों को दमन में रखने का एक साधन थी। अगर कोई निम्न जाति की महिला अपने स्तन ढकने की कोशिश करती, तो उसे इसके लिए टैक्स चुकाना पड़ता।

यह टैक्स महिलाओं के स्तनों के आकार के आधार पर तय किया जाता था। यह न केवल आर्थिक शोषण था, बल्कि महिलाओं की गरिमा का खुलेआम अपमान भी था। इस प्रथा ने समाज में जातिगत और लैंगिक असमानता को गहरा किया और निम्न जातियों के आत्मसम्मान को कुचलने का काम किया।

नंगेली का साहसिक विरोध

इस कुप्रथा के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाने वाली महिला थीं नंगेली, जो चेरथला गांव की एक दलित महिला थीं। नंगेली ने “स्तन ढकने का टैक्स” चुकाने से इनकार कर दिया। जब अधिकारी उनसे टैक्स वसूलने पहुंचे, तो नंगेली ने साहसिक कदम उठाते हुए अपने स्तन काटकर पत्तल में रखकर अधिकारियों को सौंप दिए।

इस विरोध के कारण नंगेली की मृत्यु हो गई, लेकिन उनका बलिदान समाज के लिए एक प्रेरणा बन गया। उनकी कुर्बानी ने न केवल त्रावणकोर साम्राज्य को झकझोर दिया, बल्कि समाज में अन्याय और भेदभाव के खिलाफ एक बड़े आंदोलन को जन्म दिया।

समाज पर नंगेली के बलिदान का प्रभाव

नंगेली की शहादत ने पूरे क्षेत्र में जनाक्रोश को जन्म दिया। दलित समुदाय और प्रगतिशील विचारधारा वाले लोगों ने इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद की। जनता के बढ़ते दबाव और आंदोलन के कारण त्रावणकोर साम्राज्य को “स्तन ढकने का टैक्स” समाप्त करना पड़ा।

नंगेली का यह साहसिक कदम भारतीय समाज में समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। इस घटना ने सामाजिक सुधार आंदोलनों को मजबूती दी और जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई को नई दिशा दी।

जातिगत और लैंगिक असमानता का प्रतीक

“स्तन ढकने का टैक्स” केवल एक कुप्रथा नहीं थी; यह भारतीय समाज में जातिगत और लैंगिक असमानता की जटिलता को दर्शाती थी। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि समाज में कैसे जातिगत आधार पर लोगों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित किया गया।

नंगेली का बलिदान समाज के लिए एक सबक है कि अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिए साहस और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। यह घटना यह भी सिखाती है कि समानता और न्याय के लिए संघर्ष करना कितना महत्वपूर्ण है।

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आज के संदर्भ में नंगेली की प्रेरणा

आज जब हम समानता और महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो यह याद रखना आवश्यक है कि हमें ये अधिकार इतिहास के ऐसे बलिदानों की वजह से मिले हैं। नंगेली का साहस हमें अन्याय और भेदभाव के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है।

उनकी कहानी समाज में बदलाव लाने की शक्ति का प्रतीक है और हमें याद दिलाती है कि एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए साहस और सामूहिक प्रयास जरूरी हैं।

निष्कर्ष

“स्तन ढकने का टैक्स” जैसी कुप्रथाओं का अंत केवल साहसी और प्रतिबद्ध लोगों के बलिदान से संभव हो सका। नंगेली का बलिदान न केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक कदम था, बल्कि यह समाज में समानता और न्याय की स्थापना के लिए भी प्रेरणादायक है।

नंगेली की कहानी इतिहास के पन्नों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और हमें यह सिखाती है कि अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिए साहसिक कदम उठाना कितना आवश्यक है।

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