संविधान और नियमों के तहत प्रक्रिया
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत, जब भी सभापति या उपसभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आता है, तब वे सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते। उन्हें सदन में मौजूद रहने और अपनी बात रखने का अधिकार है, लेकिन मतदान में भाग नहीं ले सकते। प्रस्ताव पारित होने के लिए राज्यसभा में आधे से अधिक सांसदों का समर्थन आवश्यक है। यदि प्रस्ताव राज्यसभा में पारित हो जाता है, तो यह लोकसभा में भेजा जाएगा।
आरोप और विवाद
विपक्ष ने धनखड़ पर सदन को पक्षपाती तरीके से चलाने का आरोप लगाया है। आरोप है कि उन्होंने विपक्षी सांसदों की आवाज को बार-बार दबाया, विशेषाधिकार प्रस्ताव का दुरुपयोग किया, और सरकार के विरोध को अवैध घोषित किया। विपक्षी दलों का कहना है कि उनकी ओर से दिए गए नोटिस और चर्चाओं की मांगों को बार-बार खारिज किया गया।
संसदीय गतिरोध और विपक्ष की शिकायतें
विपक्ष का दावा है कि उनके द्वारा नियम 267 के तहत दिए गए 42 नोटिसों में से एक भी चर्चा के लिए स्वीकार नहीं किया गया। इसके अलावा, विपक्ष का आरोप है कि उनके भाषणों और मुद्दों को रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया जा रहा।
पूर्ववर्ती उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति, जैसे शंकर दयाल शर्मा, भैरों सिंह शेखावत, और हामिद अंसारी के कार्यकाल में नियम 267 के तहत चर्चाएं होती थीं। लेकिन वर्तमान में इस परंपरा को बंद कर दिया गया है। विपक्ष का कहना है कि सरकार उनके मुद्दों, जैसे मणिपुर हिंसा, अदानी घोटाले, और किसानों की समस्याओं पर चर्चा से बच रही है।
धनखड़ का इतिहास
उपराष्ट्रपति बनने से पहले, जगदीप धनखड़ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे। उनके और ममता बनर्जी सरकार के बीच लगातार तनाव की खबरें आती रहीं। ममता बनर्जी ने उनके खिलाफ तीन बार राष्ट्रपति को पत्र लिखकर शिकायत की थी।
संसदीय कार्यवाही और लोकतंत्र पर सवाल
विपक्ष का कहना है कि सदन के अंदर उनकी आवाज को दबाया जा रहा है। सांसदों का निलंबन, नोटिस खारिज करना, और विपक्षी नेताओं को बोलने से रोकना लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
निष्कर्ष
अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष ने राज्यसभा में अपनी नाराजगी जाहिर की है। हालांकि, संसद का मौजूदा सत्र 20 दिसंबर को समाप्त हो रहा है, जिससे इस प्रस्ताव पर चर्चा संभव नहीं दिखती। लेकिन यह घटना न केवल संसद के भीतर बल्कि जनता के बीच भी एक बड़े राजनीतिक मुद्दे के रूप में चर्चा का विषय बन गई है।